संजय गांधी का उदय आपातकाल के दौरान हुआ, जब उन्होंने अपनी माँ इंदिरा गांधी के करीबी सलाहकार की भूमिका निभाई। उनका प्रभाव इतना बढ़ गया था कि उन्हें उस समय का दूसरा सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता था। उन्होंने कई महत्वपूर्ण नीतियों को लागू करने में अहम भूमिका निभाई, जिनमें से कुछ आज भी विवादों से घिरी हैं। इनमें सबसे प्रमुख है परिवार नियोजन कार्यक्रम, जिसके तहत नसबंदी को बढ़ावा दिया गया। इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन में हुई ज्यादतियों के कारण व्यापक आक्रोश फैला और इसे संजय गांधी के राजनीतिक जीवन का एक काला अध्याय माना जाता है।

संजय गांधी की महत्वाकांक्षाएँ और उनके तेज़-तर्रार फैसले अक्सर विवादों का कारण बनते थे। उन पर भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के भी आरोप लगे। मारुति कार परियोजना, जिसे उन्होंने शुरू किया, भी विवादों में घिरी रही। हालांकि, उनके समर्थक उन्हें एक दूरदर्शी नेता मानते थे, जो देश को आधुनिक बनाने के लिए प्रतिबद्ध थे। उन्होंने युवाओं को राजनीति में लाने और देश के विकास में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया।

संजय गांधी के व्यक्तित्व के बारे में कई मत हैं। कुछ उन्हें निरंकुश और सत्ता के भूखे व्यक्ति के रूप में देखते हैं, तो कुछ उन्हें एक करिश्माई नेता मानते हैं, जिनमें देश को बदलने की क्षमता थी। उनकी अचानक मृत्यु ने उनके राजनीतिक जीवन का अंत कर दिया, लेकिन उनकी विरासत आज भी चर्चा का विषय है।

उनकी नीतियों और कार्यक्रमों के दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन करना मुश्किल है। हालांकि, यह कहना गलत नहीं होगा कि संजय गांधी ने भारतीय राजनीति की दिशा को प्रभावित किया। उनके जीवन और कार्यकाल का अध्ययन हमें इतिहास के एक महत्वपूर्ण दौर को समझने में मदद करता है। उनके व्यक्तित्व की जटिलताएँ और उनके फैसलों के परिणाम आज भी अध्ययन का विषय हैं।

संजय गांधी की कहानी भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह एक ऐसी कहानी है जो सत्ता, महत्वाकांक्षा, विवाद और त्रासदी से भरी हुई है। यह एक ऐसी कहानी है जिसे भुलाया नहीं जा सकता।